Friday, April 11, 2008

एक भजन

जीवन की डोर, प्रभु हाथो मैं तेरे
बीच भवंर मैं हूँ, मुर्लीवाले मेरे
तुम bin कौन लगायें पार
हो मेरे तारनहार

भोगो मैं फंसकर
जीवन के din बीतायें
भूलकर प्रभु तुझको
अनमोल श्वास यों ही गंवायें

हार के संसार से
अब प्यास तेरी जगाई
मीरा, शबरी जेसे तो नही
लेकीन प्रभु तेरी याद आयी

गोपियों सा प्रेम मुज्को देना
नैया मेरी तू ही खेना
अवगुण भुलाकर प्रभु मेरे
अपना मुज्को बना लेना

हैं अब मेरी ये ही आस
अब न छोटे ये प्यास
लो बाती सी जलती जाए
भले टूट जह्यें ये श्वास

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